लोगों की राय

बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति

एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2696
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति

प्रश्न- सामाजिक अनुसन्धान की गुणात्मक पद्धति का वर्णन कीजिये।

उत्तर -

हेनरी पाइनकर की मान्यता है कि समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धतियाँ तो अनेक हैं लेकिन परिणाम या सामान्यीकरण बहुत कम हैं तथा समाजशास्त्री प्रामाणिक निष्कर्षो तक बहुत कम पहुँच पाये हैं। समाजशास्त्र अमूर्त घटनाओं के अध्ययन के लिए गुणात्मक पद्धतियों का तथा मूर्त घटनाओं के अध्ययन के लिए गणनात्मक पद्धतियों का प्रयोग करता है। कहाँ कौन-सी पद्धति का प्रयोग किया जायेगा, यह विषय की प्रकृति पर निर्भर करता है। गुणात्मक पद्धति का वर्णन निम्नवत् है -

गुणात्मक पद्धतियाँ
(Qualitative Methods )

जिन पद्धतियों की सहायता से अमूर्त तथ्यों का अध्ययन किया जाता है, उन्हें ही गुणात्मक पद्धतियाँ कहा जाता है। समाजशास्त्र में अमूर्त तथ्यों या घटनाओं जैसे सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक मूल्यों, धारणाओं, विश्वासों, प्रवृत्तियों आदि का अध्ययन करने के लिये गुणात्मक पद्धतियों का ही प्रयोग प्रमुखतः किया जाता है। समाजशास्त्र में प्रयुक्त गुणात्मक पद्धतियाँ निम्नलिखित हैं-

1. आगमन एवं निगमन विधि/पद्धति - यह पद्धति विशिष्ट से सामान्य की ओर ले जाने वाली है। इसमें कुछ विशिष्ट घटनाओं का पता लगाया जाता है और उनके आधार पर सामान्यीकरण किया जाता है या निष्कर्ष निकाला जाता है। इस पद्धति के समर्थकों में ऐतिहासिक सम्प्रदाय से सम्बन्धित लोग प्रमुख हैं। इनका कहना है कि भूतकाल में घटित प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर कुछ प्रामाणिक निष्कर्ष निकाले एवं सामान्य नियम बनाये जा सकते हैं। यदि हम कुछ बड़े नगरों में गन्दी बस्तियों के अध्ययन के आधार पर यह पायें कि वहाँ की परिस्थितियाँ व्यक्तित्व को विघटित करने और व्यक्ति को अपराधी बनाने में योग देती हैं तो ऐसे कुछ उदाहरणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि गन्दी बस्तियाँ व्यक्तित्व के विघटन एवं अपराधी व्यवहार के लिए उत्तरदायी हैं। यह निष्कर्ष आगमन पद्धति की सहायता से निकाला गया है जहाँ विशिष्ट से सामान्य की ओर बढ़ा गया है। इस पद्धति के अन्तर्गत कुछ विशिष्ट उदाहरणों के आधार पर विशेष नियम बनाये जाते हैं। यद्यपि आज भी कई समाजशास्त्रियों के द्वारा इस पद्धति का प्रयोग किया जाता है, परन्तु अनेक कठिनाईयों के कारण अब धीरे-धीरे इसका प्रयोग घटता जा रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि यदि भूतकाल की घटनाओं को ठीक से समझे बिना उनके आधार पर कुछ निष्कर्ष निकाले जाते हैं या नियम बनाये जाते हैं तो उनके प्रामाणिक होने की आशा नहीं की जा सकती। इसमें प्राप्त निष्कर्षो की सत्यता की जाँच करना साधारणतः सम्भव नहीं होता।

निगमन पद्धति - 'सामान्य से विशिष्ट की ओर ले जाती है। यहाँ अनुभव या पूर्ब ज्ञान के आधार पर निकाले गये सामान्य निष्कर्षों के आधार पर विशिष्ट घटनाओं या उदाहरणों को समझने का प्रयत्न किया जाता है। यहाँ पहले से मान्य नियमों के आधार पर किसी घटना विशेष को समझने की कोशिश की जाती है। उदाहरण- यदि यह सामान्य नियम बना लिया जाये कि 'टूटे परिवार अपराधों के लिए उत्तरदायी हैं और फिर यदि हम यह पायें कि रामलाल और सोहनलाल नामक व्यक्ति अपराधी हैं और वे ऐसे परिवारों से सम्बन्धित हैं जिनमें या तो माता-पिता में से किसी ने एक-दूसरे को छोड़ दिया है, तलाक दे दिया है या जहाँ हर समय लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं तो ऐसी स्थिति में सामान्य से विशिष्ट की ओर ले जाने वाली इसी पद्धति को निगमन पद्धति कहेंगे।

2. वैयक्तिक जीवन अध्ययन पद्धति - सामाजिक जीवन के गुणात्मक पहलू के अध्ययन हेतु इस पद्धति का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। इसमें किसी व्यक्ति, संस्था या समुदाय के बारे में. पूर्ण एवं गहन जानकारी प्राप्त की जाती है। प्राचीन समय में इतिहासकार इसका प्रयोग प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुरुषों के जीवन वृतान्त एवं महत्वपूर्ण घटनाओं के उल्लेख के लिये करते थे। समाजशास्त्र में वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का प्रयोग सर्वप्रथम 'हरबर्ट स्पेन्सर' ने किया था, किन्तु व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक रूप में इसका प्रयोग करने का श्रेय 'चार्ल्स लीप्ले' को है। लीप्ले ने फ्रांस में परिवारों के आय-व्यय के बजट के अध्ययन के लिये इसी विधि का सहारा लिया। आधुनिक समय में वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का प्रयोग मनोचिकित्सकों द्वारा मानसिक रोगियों, अपराधियों, उददण्ड एवं अनुशासनहीन युवकों के उपचार हेतु किया जाता है। समाज वैज्ञानिकों ने इसका प्रयोग समाज के प्रतिभाशाली व्यक्तियों, नेताओं, कलाकारों, लेखकों, कवियों, उपन्यासकारों एवं समाज सुधारकों के सम्पूर्ण जीवन वृतान्त का अध्ययन करने तथा सांस्कृतिक एवं सामाजिक समूहों जैसे परिवार, राजनीतिक दल, गैंग, जनजाति तथा किसी संस्था जैसे अस्पताल, गिरजाघर, औद्योगिक संगठन, सरकारी विभाग एवं लघु समुदायों के अध्ययन में बहुत किया है। वैयक्तिक अध्ययन पद्धति में अध्ययन की जाने वाली इकाई के व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित गहनतम एवं गुणात्मक जानकारी प्राप्त की जाती है।

3. समाजमिति पद्धति - इस पद्धति में अधिमान व्यवस्था पर जोर दिया जाता है। किसी भी व्यक्ति, वस्तु, समूह आदि को प्राप्त अधिमानों के आधार पर ही निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इस पद्धति में कुछ निर्धारित पैमानों का प्रयोग किया जाता है जिनकी सहायता से पारस्परिक सम्बन्धों की निकटता व दूरी को आसानी से जाना जा सकता है। किसी विद्यार्थी, अध्यापक, नेता, अभिनेता आदि की लोकप्रियता का पता लगाने के लिये इस विधि का प्रयोग किया जाता है। इसके लिये लोकप्रियता के आधारों का पता लगाया जाता है और तत्पश्चात यह देखा जाता है कि किसे प्रथम, द्वितीय या तृतीय अधिमान प्राप्त हुआ है। प्रत्येक अधिमान के निश्चित अंक होते हैं और जिसे सर्वाधिक मिलते हैं, उसे सबसे अधिक लोकप्रिय माना जाता है। जिस प्रकार वर्षा की मात्रा या तापक्रम में होने वाले परिवर्तनों का पता लगाने के लिये निश्चित पैमाने होते हैं, उसी प्रकार सामाजिक घटनाओं को मापने या उसकी वास्तविकता को समझने के लिये समाजमिति के पैमाने का प्रयोग किया जाता है। इस पद्धति के अन्तर्गत समाजचित्र अथवा समाज-सारणी की सहायता से तथ्यों की व्याख्या एवं स्पष्टीकरण किया जाता है।

4. सामाजिक दूरी का पैमाना - 'बोगार्डस' ने संस्थागत व्यवहारों का अध्ययन करने हेतु सामाजिक दूरी मापने के लिये कुछ पैमाने तैयार किये। इन पैमानों का महत्व यही है कि इनकी सहायता से किसी व्यक्ति, वस्तु, समूह, समिति, समुदाय आदि के प्रति लोगों की रुचि को मापा जा सकता है। भिन्न-भिन्न व्यक्तियों या वस्तुओं के प्रति लोगों की रुचि में असमानता पायी जाती है। कुछ लोग किसी व्यक्ति, समूह या समुदाय के काफी निकट होते हैं, जबकि कुछ अन्य काफी दूर होते हैं और यहाँ तक कि वे एक-दूसरे से घृणा भी कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में निकटता और दूरी का पता लगाने में ये पैमाने काफी सहायक होते हैं। इस पद्धति में प्रयुक्त विभिन्न पैमानों की सहायता से विभिन्न पारिस्थितियों, घटनाओं अथवा परम्परागत व्यवहारों के प्रति लोगों की असमान मनोवृत्तियों का पता लगाया जाता है। आज कई ऐसे पैमाने उपलब्ध हैं जिनके माध्यम से लोगों की मनोवृत्तियों को मापा जा सकता है। विभिन्न विद्वानों द्वारा निर्मित पैमानों में से बोगार्डस का पैमाना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पद्धति में सर्वप्रथम किसी सामाजिक घटना को भिन्न-भिन्न स्तरों में बांट लिया जाता है। फिर प्रत्येक स्तर के प्रति एक समुदाय के लोगों की रुचि का पता लगाया जाता है और विभिन्न स्तर पर लोगों की भिन्न-भिन्न रुचियों के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। ये निष्कर्ष सम्बन्धों की निकटता या दूरी को प्रकट करने में सहायक सिद्ध होते हैं।

5. सामुदायिक अध्ययन पद्धति - किसी भी सामाजिक संस्था का अध्ययन उस समुदाय की पृष्ठभूमि में करना, जहाँ वह समस्या मौजूद है, सामुदायिक अध्ययन पद्धति है। यदि किसी जनजाति से सम्बन्धित किसी समााजिक समस्या का अध्ययन करना है तो उस सम्पूर्ण जनजाति की पृष्ठभूमि में ही ऐसा किया जा सकता है। इसके लिये सम्पूर्ण जनजाति के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जीवन को समझना होगा। समुदाय से अलग करके किसी सामाजिक समस्या का अध्ययन करने पर सही स्थिति का पता लगाना और वास्तविक कारणों को जान पाना सम्भव नहीं होगा। इस पद्धति में अवलोकन, तुलना तथा परीक्षण की सहायता से समुदाय के सम्पूर्ण जीवन के बीच ही सामाजिक समस्याओं को समझने का प्रयत्न किया जाता है। साधारणतः अध्ययनकर्ता उस समुदाय का एक सदस्य या अंग बन जाता है जिसका उसे अध्ययन करना होता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय प्रजातीय संघर्षों का अध्ययन करने के लिये इस पद्धति का उपयोग किया गया था। इस पद्धति का इस दृष्टि से विशेष उपयोग है कि यह अन्य गुणात्मक पद्धतियों की कमियों को दूर करने में सहायक है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- अनुसंधान की अवधारणा एवं चरणों का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- अनुसंधान के उद्देश्यों का वर्णन कीजिये तथा तथ्य व सिद्धान्त के सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
  3. प्रश्न- शोध की प्रकृति पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- शोध के अध्ययन-क्षेत्र का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वैज्ञानिक पद्धति' क्या है? वैज्ञानिक पद्धति की विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  6. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरणों का वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- अन्वेषणात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
  8. प्रश्न- अनुसन्धान कार्य की प्रस्तावित रूपरेखा से आप क्या समझती है? इसके विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- शोध से क्या आशय है?
  10. प्रश्न- शोध की विशेषतायें बताइये।
  11. प्रश्न- शोध के प्रमुख चरण बताइये।
  12. प्रश्न- शोध की मुख्य उपयोगितायें बताइये।
  13. प्रश्न- शोध के प्रेरक कारक कौन-से है?
  14. प्रश्न- शोध के लाभ बताइये।
  15. प्रश्न- अनुसंधान के सिद्धान्त का महत्व क्या है?
  16. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के आवश्यक तत्त्व क्या है?
  17. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति का अर्थ लिखो।
  18. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण बताओ।
  19. प्रश्न- गृह विज्ञान से सम्बन्धित कोई दो ज्वलंत शोध विषय बताइये।
  20. प्रश्न- शोध को परिभाषित कीजिए तथा वैज्ञानिक शोध की कोई चार विशेषताएँ बताइये।
  21. प्रश्न- गृह विज्ञान विषय से सम्बन्धित दो शोध विषय के कथन बनाइये।
  22. प्रश्न- एक अच्छे शोधकर्ता के अपेक्षित गुण बताइए।
  23. प्रश्न- शोध अभिकल्प का महत्व बताइये।
  24. प्रश्न- अनुसंधान अभिकल्प की विषय-वस्तु लिखिए।
  25. प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के चरण लिखो।
  26. प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के उद्देश्य क्या हैं?
  27. प्रश्न- प्रतिपादनात्मक अथवा अन्वेषणात्मक अनुसंधान प्ररचना से आप क्या समझते हो?
  28. प्रश्न- 'ऐतिहासिक उपागम' से आप क्या समझते हैं? इस उपागम (पद्धति) का प्रयोग कैसे तथा किन-किन चरणों के अन्तर्गत किया जाता है? इसके अन्तर्गत प्रयोग किए जाने वाले प्रमुख स्रोत भी बताइए।
  29. प्रश्न- वर्णात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
  30. प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध अभिकल्प क्या है? इसके विविध प्रकार क्या हैं?
  31. प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध का अर्थ, विशेषताएँ, गुण तथा सीमाएँ बताइए।
  32. प्रश्न- पद्धतिपरक अनुसंधान की परिभाषा दीजिए और इसके क्षेत्र को समझाइए।
  33. प्रश्न- क्षेत्र अनुसंधान से आप क्या समझते है। इसकी विशेषताओं को समझाइए।
  34. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ व प्रकार बताइए। इसके गुण व दोषों की विवेचना कीजिए।
  35. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख प्रकार एवं विशेषताएँ बताइये।
  36. प्रश्न- सामाजिक अनुसन्धान की गुणात्मक पद्धति का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के गुण लिखो।
  38. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के दोष बताओ।
  39. प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान के दोष बताओ।
  40. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन और सर्वेक्षण अनुसंधान में अंतर बताओ।
  41. प्रश्न- पूर्व सर्वेक्षण क्या है?
  42. प्रश्न- परिमाणात्मक तथा गुणात्मक सर्वेक्षण का अर्थ लिखो।
  43. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ बताकर इसकी कोई चार विशेषताएँ बताइए।
  44. प्रश्न- सर्वेक्षण शोध की उपयोगिता बताइये।
  45. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न दोषों को स्पष्ट कीजिए।
  46. प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति कीक्या उपयोगिता है? सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति की क्या उपयोगिता है?
  47. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न गुण बताइए।
  48. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या सीमाएँ हैं?
  50. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की सामान्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या उपयोगिता है?
  52. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की विषय-सामग्री बताइये।
  53. प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में तथ्यों के संकलन का महत्व समझाइये।
  54. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के प्रमुख चरणों की विवेचना कीजिए।
  55. प्रश्न- अनुसंधान समस्या से क्या तात्पर्य है? अनुसंधान समस्या के विभिन्न स्रोतक्या है?
  56. प्रश्न- शोध समस्या के चयन एवं प्रतिपादन में प्रमुख विचारणीय बातों का वर्णन कीजिये।
  57. प्रश्न- समस्या का परिभाषीकरण कीजिए तथा समस्या के तत्वों का विश्लेषण कीजिए।
  58. प्रश्न- समस्या का सीमांकन तथा मूल्यांकन कीजिए तथा समस्या के प्रकार बताइए।
  59. प्रश्न- समस्या के चुनाव का सिद्धान्त लिखिए। एक समस्या कथन लिखिए।
  60. प्रश्न- शोध समस्या की जाँच आप कैसे करेंगे?
  61. प्रश्न- अनुसंधान समस्या के प्रकार बताओ।
  62. प्रश्न- शोध समस्या किसे कहते हैं? शोध समस्या के कोई चार स्त्रोत बताइये।
  63. प्रश्न- उत्तम शोध समस्या की विशेषताएँ बताइये।
  64. प्रश्न- शोध समस्या और शोध प्रकरण में अंतर बताइए।
  65. प्रश्न- शैक्षिक शोध में प्रदत्तों के वर्गीकरण की उपयोगिता क्या है?
  66. प्रश्न- समस्या का अर्थ तथा समस्या के स्रोत बताइए?
  67. प्रश्न- शोधार्थियों को शोध करते समय किन कठिनाइयों का सामना पड़ता है? उनका निवारण कैसे किया जा सकता है?
  68. प्रश्न- समस्या की विशेषताएँ बताइए तथा समस्या के चुनाव के अधिनियम बताइए।
  69. प्रश्न- परिकल्पना की अवधारणा स्पष्ट कीजिये तथा एक अच्छी परिकल्पना की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  70. प्रश्न- एक उत्तम शोध परिकल्पना की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- उप-कल्पना के परीक्षण में होने वाली त्रुटियों के बारे में उदाहरण सहित बताइए तथा इस त्रुटि से कैसे बचाव किया जा सकता है?
  72. प्रश्न- परिकल्पना या उपकल्पना से आप क्या समझते हैं? परिकल्पना कितने प्रकार की होती है।
  73. प्रश्न- उपकल्पना के स्रोत, उपयोगिता तथा कठिनाइयाँ बताइए।
  74. प्रश्न- उत्तम परिकल्पना की विशेषताएँ लिखिए।
  75. प्रश्न- परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? किसी शोध समस्या को चुनिये तथा उसके लिये पाँच परिकल्पनाएँ लिखिए।
  76. प्रश्न- उपकल्पना की परिभाषाएँ लिखो।
  77. प्रश्न- उपकल्पना के निर्माण की कठिनाइयाँ लिखो।
  78. प्रश्न- शून्य परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
  79. प्रश्न- उपकल्पनाएँ कितनी प्रकार की होती हैं?
  80. प्रश्न- शैक्षिक शोध में न्यादर्श चयन का महत्त्व बताइये।
  81. प्रश्न- शोधकर्त्ता को परिकल्पना का निर्माण क्यों करना चाहिए।
  82. प्रश्न- शोध के उद्देश्य व परिकल्पना में क्या सम्बन्ध है?
  83. प्रश्न- महत्वशीलता स्तर या सार्थकता स्तर (Levels of Significance) को परिभाषित करते हुए इसका अर्थ बताइए?
  84. प्रश्न- शून्य परिकल्पना में विश्वास स्तर की भूमिका को समझाइए।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book